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यूपी में 27,964 स्कूल होंगे बंद, 75 जिले NGO के हवालेः शिक्षक नेता तारकेश्वर शाही ने उठाए दलित-पिछड़े बच्चों की शिक्षा पर सवाल, वीडियो देखें

यूपी में 27,964 स्कूल होंगे बंद
Written by Ravi Singh

यूपी में 27,964 स्कूल होंगे बंद, 75 जिले NGO के हवालेः शिक्षक नेता तारकेश्वर शाही ने उठाए दलित-पिछड़े बच्चों की शिक्षा पर सवाल, वीडियो देखें

 

लखनऊः उत्तर प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था को लेकर बड़ा कदम उठाया गया है, जिसमें राज्य सरकार ने 27,964 प्राथमिक विद्यालयों को बंद करने का फैसला लिया है। इस फैसले के तहत प्रदेश के 75 जिलों के एक-एक विकास खंडों को गैर- सरकारी संगठनों (NGOs) के हवाले किया जाएगा।

यूपी में 27,964 स्कूल होंगे बंद

यह योजना 20 अगस्त से लागू होने जा रही है।

इस कदम पर शिक्षक संगठनों और विभिन्न सामाजिक संगठनों ने गहरी चिंता व्यक्त की है। शिक्षक नेता तारकेश्वर शाही ने इस फैसले को दलित, पिछड़े और मजदूर वर्ग के बच्चों की शिक्षा के लिए घातक बताया है। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि इस फैसले से गरीब और वंचित वर्ग के बच्चों की शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। शाही ने कहा कि यह कदम गुजरात मॉडल के तहत उठाया जा रहा है, जिसे यूपी में लागू करना दुर्भाग्यपूर्ण है।

 

शाही ने सवाल उठाया कि आखिरकार गरीब और पिछड़े वर्ग के बच्चे कैसे पढ़ेंगे? उन्होंने कहा कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले अधिकांश बच्चे दलित और पिछड़े वर्ग से आते हैं, जिनके लिए ये स्कूल ही शिक्षा का एकमात्र साधन हैं। उन्होंने कहा कि अगर ये स्कूल बंद हो जाएंगे और शिक्षा का जिम्मा NGOs को सौंप दिया जाएगा, तो इसका सीधा असर गरीब बच्चों पर पड़ेगा, जिनके पास निजी स्कूलों में पढ़ने का साधन नहीं है।

तारकेश्वर शाही ने प्रदेश की जनता की खामोशी पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि इतनी बड़ी शिक्षा व्यवस्था में बदलाव के बावजूद जनता की ओर से कोई विरोध या प्रतिक्रिया नहीं आ रही है। यह खामोशी दर्शाती है कि या तो लोगों को इस फैसले की जानकारी नहीं है, या फिर वे इसे लेकर गंभीर नहीं हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षा का निजीकरण करना गरीब और वंचित वर्गों के बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करना है।

सरकारी स्कूलों के बंद होने से शिक्षा का अधिकार केवल अमीर और संपन्न वर्ग तक सीमित हो जाएगा, जो संविधान के मौलिक अधिकारों के खिलाफ है।

शाही ने सरकार पर यह भी आरोप लगाया कि उसने यह फैसला बिना किसी सार्वजनिक विमर्श के लिया है। उन्होंने कहा कि सरकार ने यह फैसला अचानक लिया और जनता को इसके परिणामों से अवगत नहीं कराया। यह एक तरह से शिक्षा व्यवस्था को धीरे-धीरे निजी हाथों में सौंपने का प्रयास है, जिसका खामियाजा आने वाले समय में बच्चों को भुगतना पड़ेगा।

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