पढ़ने और पढ़ाने का पूरा ढंग बदल देगी कृत्रिम बुद्धिमत्ता
जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तेजी से दुनिया भर के उद्योगों को बदल रहा है, तब शिक्षा क्षेत्र में इसकी पैठ विकास का आश्वासन भी है और एक महत्वपूर्ण चुनौती भी। एक विविध और व्यापक शिक्षा प्रणाली वाले देश को एआई से संपन्न करना वास्तव में हमारे युवाओं को 21वीं सदी में जरूरी कौशल से लैस करना भी है।
किसी छात्र को उसकी व्यक्तिगत जरूरतों के अनुरूप सिखाने से लेकर प्रशासनिक कार्यों तक, एआई शिक्षकों की मदद कर सकता है। वह शिक्षकों को बता सकता है कि वह पढ़ाते अच्छा हैं या सलाह अच्छी देते हैं। एआई शिक्षण का अनुभव बढ़ाने में शिक्षकों की मदद कर सकता है। छात्रों के यथोचित मूल्यांकन को भी बल मिल सकता है। छात्रों को कितना पढ़ाया जा रहा है और वह कितना सीख रहे हैं, इसका डाटा विस्तार से उपलब्ध हो सकता है। इससे शिक्षण में आसानी हो सकती है और शिक्षण विधियों में सुधार की संभावना बढ़ सकती है।
यह साफ तौर पर जानना चाहिए कि एआई कभी शिक्षकों की जगह नहीं ले सकता। एआई शिक्षकों के लिए एक शक्तिशाली उपकरण है, जो शिक्षकों को ज्यादा सक्षम बना सकता है। भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में जहां शिक्षा की गुणवत्ता एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में नाटकीय रूप से अलग हो सकती है, वहां एआई शिक्षा में समानता लाने की उम्मीद जगाता है। यह गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और छात्रों के बीच की दूरी को पाट सकता है। दूरदराज के क्षेत्रों-गांवों में भी छात्रों को शहरी क्षेत्रों के समान सीखने के अवसर मिल सकते हैं।
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हालांकि, भारत में इसे पूरी तरह लागू करना चुनौती है। सबसे गंभीर मुद्दों में से एक है – डिजिटल विभाजन और डिजिटल साक्षरता। भारत में इंटरनेट कनेक्टिविटी के तेज विकास के बावजूद, लाखों छात्रों के पास अभी भी एआई के लिए जरूरी उपकरण और सूचनाएं नहीं हैं। इस डिजिटल असमानता से मौजूदा शैक्षिक असमानताओं के बढ़ने का खतरा है। गरीब छात्र और पीछे रह जाएंगे।
वैसे, नीति आयोग ने साफ कर दिया है कि ‘एआई फॉर ऑल’ राष्ट्रीय प्रगति का मंत्र होगा। एआई या कृत्रिम बुद्धिमता के लाभ को जन-जन तक पहुंचाना होगा। वैसे, एआई अभी भी विकास की शुरुआती अवस्था में है और जिस तरह से यह विकसित हो रहा है, उससे वैज्ञानिक भी अचंभित हैं। इसकी ताकत को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। एआई जब डाटा से लैस हो जाएगा, तब शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण भी बदल जाएगा। एआई की मदद से छात्रों को अलग-अलग ढंग से पढ़ाना संभव हो जाएगा।
बहरहाल, शिक्षक-एआई साझेदारी सतत सीखने पर जोर देती है, जिससे व्यावहारिक ज्ञान के प्रयोग और गहरी सोच के माध्यम से वास्तविक दुनिया की समस्याओं को हल करने में मदद मिल सकती है। नवाचार करने के लिए विद्यार्थियों की क्षमताओं में वृद्धि हो सकती है। यह तकनीक छात्रों में सीखते रहने की आदत डाल सकती है, जिससे उन्हें पेशेवर जीवन में लगातार आगे बढ़ने में मदद मिल सकती है।
एक अन्य पहलू भी है, एआई को लागू करने में सबसे बड़ी चुनौती क्षेत्रीय भाषाओं पर अंग्रेजी-माध्यम की शिक्षा को प्राथमिकता देना है। इसमें प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता और याद रखने पर जोर देने की चुनौती शामिल है। यह अक्सर देखा जाता है कि इंटरनेट की मदद लेने वाले लोग तथ्यों को याद करने से बचते हैं। एआई का जोखिम विशेष रूप से कमजोर समुदायों के छात्रों के लिए चिंताजनक है, जिससे उनके लिए सीखने की संभावनाएं कम हो जाती हैं।
इसके अलावा, एआई का प्रयोग जाति, धर्म, लिंग और वर्ग के अंतर्विरोधों को ज्यादा स्पष्ट करते हुए शिक्षा के मूल उद्देश्यों में ही विफल हो सकता है। ध्यान रहे, अंतर्विरोधों से बचकर ही छात्र आगे चलकर जिम्मेदार नागरिक के रूप में सम्मानजनक जीवन जीते हैं। इसके अलावा, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि एआई का नियंत्रण किसके पास रहता है। पूर्वाग्रह और निहित स्वार्थ अगर एल्गोरिदम में घुस गए, तो असमानताओं को बढ़ा सकते हैं।
ध्यान रखना होगा कि शिक्षा में एआई एक ऐसा उपकरण होना चाहिए, जो शिक्षकों व छात्रों को समान रूप से सशक्त बनाए और मौजूदा असमानताओं को दूर करे। इन चुनौतियों से बचकर ही हम एआई को वास्तव में शिक्षा की शक्ति बना सकते हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)